इन्कलाब, रामलीला मैदान पर ही सीमित रहता तो बेहतर था. उन दिनों मेरी छोटी-छोटी बातें भी मैडम को बाण की तरह चुभने लगती और घर में महाभारत हो जाया करती.
गुस्से में लाल, ‘अन्ना हज़ारे’ बनकर, वह अनशन पर बैठ जाती. मैं ‘कुमार विश्वास’, उसे अपनी कविताएं सुना कर मनाया करता
~राहुल चावला