एम्स डीएम न्यूरोलॉजी में ऑल इंडिया रैंकिंग में दूसरी रैंक हासिल करने वाले हज़ारों ख्वाहिशें के लेखक डॉ राहुल चावला से हमारे साथी वसीम अकरम ( हिंद युग्म) की बातचीत :
● डॉ राहुल चावला जी, पहले तो एम्स डीएम न्यूरोलॉजी में दूसरी रैंक लाने के लिए बधाई! न्यूरोलॉजी क्या है और अब आप किस चीज़ का इलाज करेंगे?
– मेडिकल साइंस में मेडिसिन से बड़ी डिग्री डीएम की होती है। डीएम यानी डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन। और डीएम न्यूरोलॉजी यानी डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन इन न्यूरोलॉजी। यह एक पोस्ट डॉक्टरेट न्यूरोलॉजी मेडिकल कोर्स है। यह एक विशेषज्ञता वाली डिग्री है। न्यूरोलॉजी यानी दिमाग़ का डॉक्टर। मैं सिर्फ़ दिमाग़ का इलाज ही नहीं कर सकता, बल्कि मेडिकल कॉलेज और विश्वविद्यालयों के मेडिकल डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर बनकर पढ़ा भी सकता हूँ।
● आज डॉक्टर्स डे भी है, इसकी भी आपको बधाई! आज के दिन यह उपलब्धि हासिल हुई आपको। आप प्रोफ़ेसर बनना पसंद करेंगे या लोगों का इलाज करना?
– एक प्रोफ़ेसर सिर्फ़ पढ़ा सकता है, लेकिन मेडिकल क्षेत्र के प्रोफ़ेसर को पढ़ाना भी होता है और पेशेंट को भी देखना होता है। हमारे पास दोहरी ज़िम्मेदारी होती है। एम्स में एक प्रोफ़ेसर डॉक्टर तीन-चार क्लास भी लेता है और पूरे दिन पेशेंट को भी देखता रहता है।
● आजकल का जो माहौल है, उसमें मानसिक समस्याएँ बढ़ रही हैं। अक्सर सुसाइड की ख़बरें आती रहती हैं। न्यूरोलॉजी से इन समस्याओं का कोई रास्ता निकलता है क्या?
– माइंड के लिए स्पेशल ब्रांच साइकाट्रिक होती है, न्यूरोलॉजी नहीं। न्यूरोलॉजी के तहत दिमाग़ के अंदर जो बीमारियाँ होती हैं, उसको ठीक किया जाता है। मसलन, किसी के दिमाग़ में लकवा मार गया, तो इसका इलाज न्यूरोलॉजी के तहत किया जाता है। लेकिन अगर आदमी को डिप्रेशन या एंग्जाइटी है, तो उसे साइकाट्रिस्ट को ही दिखाना होगा।
● हमारे समाज में कहा जाता है कि डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं। आप इसे मानते हैं?
– बिल्कुल नहीं। एक डॉक्टर इंसान ही होता है, भगवान जैसी कोई बात नहीं होती। दूसरे प्रोफ़ेशन की तरह ही डॉक्टर का भी प्रोफ़ेशन है इलाज करना। जैसे एक इंजीनियर का काम है मशीनों को ठीक करना, उसी तरह से हम डॉक्टरों का भी काम है इंसान के शरीर रूपी मशीन में आई खराबी या परेशानी को ठीक करना। मेडिकल की पढ़ाई में हम जो पढ़े होते हैं, उसके इस्तेमाल से लोगों की सेहत ठीक करते हैं और पेसेंट की जान बचाने की पूरी कोशिश करते हैं। बस! हम कोई भगवान नहीं हैं। क्योंकि जान बचाना एब्सोल्यूट जैसा कुछ नहीं होता कि हमने दवा दी और पेसेंट की जान बच गई। बल्कि उसकी बीमारी की तह तक हम जाते हैं और उसके अनुसार ही हमें एक्ट करना होता है। उस एक्ट करने के बहुत सारे ज़रिए होते हैं- मसलन, मेडिकल मैनेजमेंट, मेडिसिन प्रेस्क्रिप्शन, सर्जरी और ऑपरेशन वग़ैरह।
● आपके कहने का अर्थ है कि हर डॉक्टर एक प्रोफ़ेशनल है!
– एग्जैक्टली। हम बीमारी के हिसाब से ट्रीटमेंट करते हैं और बीमारी नहीं पकड़ में आती है तो उसे दूसरे डॉक्टर के पास रेफ़र कर देते हैं। सिर्फ़ डॉक्टर ही अकेला किसी चीज़ के लिए ज़िम्मेदार नहीं होता, हॉस्पिटल और बाक़ी चीज़ें भी ज़िम्मेदार होती हैं। एक शख़्स को डॉक्टर बनने में पैंतीस साल लग जाते हैं, लेकिन इस बात का लोग ध्यान नहीं देते कि हमने कितनी मेहनत की हुई है। सीधे या तो भगवान बोल देंगे या फिर ज़रा-सी बात पर मारने दौड़ पड़ेंगे। कभी-कभी ट्रीटमेंट ना करना भी एक प्रकार से इलाज करना होता है, लेकिन इसको लोग समझ नहीं पाते हैं।
● मेडिकल साइंस को लेकर हमारे समाज में जागरूकता की कमी देखी जाती है।
– बहुत ज़्यादा जागरूकता की कमी है हमारे समाज में। मेंटल इलनेस जैसी गंभीर बीमारियों को लेकर जागरूकता की कमी के साथ-साथ लापरवाहियाँ भी हैं। जिस तरह से डेंगी या चिकनगुनिया हैं, उसी तरह से मेंटल इलनेस भी एक गंभीर बीमारी है और इसके इलाज के लिए फ़ौरन डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
● आजकल महामारी के दौर से हम सब गुज़र रहे हैं। एक डॉक्टर और एक पेशेंट के बीच किस तरह का व्यवहार होना चाहिए, ताकि दोनों एक-दूसरे का सम्मान कर सकें।
– मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कहीं-कहीं डॉक्टरों के प्रति लोगों का रवैया ठीक नहीं रहता है। एक डॉक्टर के लिए किसी पेशेंट को समझाना बहुत मुश्किल होता है कि उसे क्या परेशानी है। वह समझने को तैयार ही नहीं होता, क्योंकि हमारे देश में साइंटफिक टेंपरामेंट की बहुत कमी है, लोग चमत्कारों पर ज़्यादा विश्वास करते हैं। मीडिया ने लोगों के ज़ेहन में इस क़दर ज़हर भर रखा है कि लोग यह बात समझने को तैयार ही नहीं हैं कि किसी बीमारी को लेकर एक डॉक्टर का रोल क्या है, इलाज कर देना या चमत्कार कर देना। इस देश में आज साइंटफिक टेंपरामेंट बढ़ाने पर ज़ोर देने की ज़रूरत है।
धन्यवाद….
Interviewer: Wasim Akram ( writer)
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